प्रश्न-क्या आध्यात्मिक्ता मनुश्य को तनाव से मुक्ती दिला सकती है?

7:21 PM Edit This 0 Comments »
आध्यात्मिकता आत्मा के अस्तित्व में सत्य या असत्य, ज्ञान या अज्ञान, विश्वास या अविश्वास से निर्मित नहीं है जब तक मनुष्य का भोतिकता पर अटूट विश्वास रहता है तब तक वह आध्यात्मिकता के एक बृहद सत्य से जुड़ने की अनुभूति नहीं प्राप्त कर पाता|

आध्यात्मिकता की शरणागति प्राप्त करते ही एक व्यापक स्व की उत्पत्ति होती है; ब्रह्मांड या प्रकृति के साथ साथ किसी देवीय प्रभुता के सहारे आध्यात्मिकता को जीवन में प्रेरणास्रोत एवं दिशानिर्देश के एक स्रोत के रूप में जब आत्मा अनुभव करती है तभी वह तनावों से मुक्त होने लगती है|

एक दोहा मेरी पुस्तक “ब्रह्मसूत्र दोहावली” से उद्धृत है:
सूत्र १-१-९ स्वाप्ययात्

हो विलीन स्व: स्वयं में सत् संपन्न हो जाये|
हीन विलीन हो लीन स्व: स्वपिति कहलाये|

जब मनुष्य अपनी परिस्थितियों को अपने काबू में नहीं रख पाता तभी वोह तनावग्रस्त होता है| उसका देश, काल, संग, क्रिया जब उसकी समस्याओं का निदान करने में असमर्थ हो जाते हैं तभी वह तनावग्रस्त होता है| जब उसका अहम् पराजित होता है तभी वह किसी अन्य की सत्ता को स्वीकार करता है|

अन्यथा जब तक वह ‘अहंब्रह्मअस्मि’ की स्थिति में स्वं को पाता है तनाव ग्रस्त रहता है|

जब तक मनुष्य आत्म को ही सर्वसर्वा समझता है तब तक वह पर-आत्मा अर्थात किसी अन्य आत्मा चाहे वह परमेश्वर भी हो उसकी सत्ता को स्वीकार नहीं कर पाता और अगर स्वीकार कर भी लेता है तो भी जब तक उसकी शरणागति को नहीं स्वीकारता वह अपने तनावों से जूझता रहता है|

ज्यों ही वह किसी “पर” अर्थात जिसे वह नहीं जानता (परमेश्वर) अर्थात देवीय प्रभुता के आगे समर्पित हो जाता है उसकी शरणागति को स्वीकार लेता है वह तनाव से शने:-शने: मुक्त होने लगता है